भारत में राजनीति में दो प्रमुख दल हैं — BJP और Congress। दोनों ने देश के लिए कई काम किए हैं। इनके अच्छे कार्य, फंडिंग स्रोत, नेतृत्व, एजेंडा और जनता पर असर को समझना ज़रूरी है।
पहला, BJP का विज़न और कार्यशैली देखें। BJP राष्ट्रवाद, सुरक्षा और विकास को मुख्य विषय बनाकर काम करती है। उन्होंने डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया जैसी योजनाएँ लाईं।
इसके अलावा, गाँव-गाँव बिजली, सस्ता गैस, जनधन योजना जैसी पहलों से आम जनता तक मदद पहुँचाने की कोशिश भी की।
दूसरी ओर, Congress का विज़न और काम “समानता, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र” पर आधारित रहा है।
कांग्रेस ने आज़ादी के बाद शिक्षा, कृषि और आधारभूत ढाँचे की नींव रखी।
मनरेगा, ग्रामीण विकास योजनाएँ और कानूनों के ज़रिए छात्रों, किसानों और गरीबों की मदद पर कांग्रेस की पकड़ रही।
अब बात करते हैं फंडिंग की — किस पार्टी किस से पैसा लेती है। BJP की फंडिंग में बड़े उद्योगपतियों और समर्थकों का योगदान ज़्यादा दिखता है। वहीं, कांग्रेस की फंडिंग में स्थानीय दानदाताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों की भूमिका ज़्यादा होती रही है।
दोनों पार्टियों को चुनावों में संसाधन जुटाने के लिए चंदे की जरूरत होती है।
नेतृत्व और विज़न की तुलना करें तो — BJP में नरेंद्र मोदी, अमित शाह जैसे नेता आगे हैं, जिनका निर्णय लेने का तरीका तेज़ और स्पष्ट माना जाता है।
Congress में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया–राहुल गांधी तक का सफर रहा है, जिनका मुख्य फोकस सामाजिक न्याय, लोकतंत्र और बहुलवाद रहा।
अब देखें कि जनता को किसका फायदा हुआ। BJP की योजनाएँ कई मामलों में तेज प्रभाव दिखाती हैं — जैसे डिजिटल सेवाएँ, बड़ा इन्फ्रा, और बाहरी विश्व के साथ भारत की साख बढ़ना।
Congress के कार्यों में दीर्घकालीन निर्माण जैसे शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा शामिल हैं, जिनका लाभ समय के साथ जनता को मिलता है।
एजेंडा की बात करें — BJP का एजेंडा राष्ट्रवाद, सुरक्षा और विकास है।
Congress का एजेंडा सामाजिक न्याय, समानता और लोकतंत्र है।
इससे हमारी सीख क्या है?
कि किसी दल को वोट देने से पहले हमें “किसका विज़न, उसका एजेंडा, और जनता तक पहुँच” देखना चाहिए, न कि सिर्फ नाम या तरह-तरह की प्रचार बातें।
सुधार कैसे करें?
चुनावी फंडिंग को पूरी तरह पारदर्शी बनाना होगा।
जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचे — प्रचार नहीं, तथ्य।
दलों को मुद्दों पर आधारित राजनीति करनी चाहिए — न कि धर्म, जाति या व्यक्तिगत झुकाव पर।
दूसरों को इससे कैसे मदद मिलेगी?
आम नागरिक को पता चलेगा कि दोनों दलों में अंतर क्या है और उन्हें किसको चुना जाना चाहिए।
छात्र और शोधकर्ता इसे अध्ययन और विश्लेषण में उपयोग कर सकते हैं।
सामाजिक चेतना बढ़ेगी — लोग सोचकर वोट देंगे, न कि केवल नाम या प्रचार देखकर।