पुरी का जगन्नाथ धाम ओडिशा राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। लोगों का मानना है कि यह मंदिर पूरे विश्व का संचालन करने वाले "CEO भगवान" का निवास स्थान है।
यहां भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ विराजमान हैं। इन मूर्तियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें हर 12 से 19 साल में बदला जाता है, जिसे 'नवकलेवर' कहते हैं।
मूर्ति के बदलने की प्रक्रिया को बेहद रहस्यमय और पवित्र माना जाता है। पुरानी मूर्तियाँ ज़मीन में दफन कर दी जाती हैं और उनके स्थान पर नई मूर्तियाँ, नीम की विशेष लकड़ी से बनाई जाती हैं, जो केवल विशेष प्रकार के पेड़ से ली जाती है।
माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर एक रहस्यमयी “ब्राह्म तत्व” होता है, जिसे एक विशेष पुजारी ही बिना देखे मूर्ति से निकालता है। अगर वह देख लेता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है। इसे ‘प्राण स्थानांतरण’ की विधि कहा जाता है।
इस मंदिर की बनावट भी अद्भुत है। मंदिर की मुख्य संरचना इतनी ऊँची है कि इसके ऊपर पक्षी उड़ते नहीं दिखते, और मंदिर की छाया दिन के किसी भी समय जमीन पर नहीं पड़ती।
मंदिर का किचन विश्व का सबसे बड़ा रसोईघर है जहाँ प्रतिदिन लाखों लोगों के लिए प्रसाद बनता है। चमत्कार यह है कि चाहे जितना भी प्रसाद बने, वह न कम होता है न अधिक।
एक और अद्भुत बात यह है कि मंदिर के शिखर पर स्थित ध्वज हर दिन उल्टा दिशा में फहरता है और पुजारी हर दिन इसे बिना किसी उपकरण के उल्टा चढ़कर बदलते हैं।
यहां हर साल आयोजित होने वाली रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। इसमें भगवान को तीन विशाल रथों में बिठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है। इसे देखने देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं।
भगवान जगन्नाथ को "दुनिया का CEO" कहा जाता है क्योंकि उनकी व्यवस्था, ऊर्जा और सेवा की भावना हर किसी को प्रेरित करती है। उनके नियम और प्रक्रिया बिल्कुल किसी बड़ी कंपनी के CEO जैसे ही हैं – हर काम समय पर, बिना रुकावट और सभी के लिए समान भाव से।
आस्था और विज्ञान का मेल किस तरह एक मंदिर में हो सकता है।
परंपराओं का पालन कैसे बिना तकनीक के भी सटीकता से होता है।
भगवान में भी नेतृत्व और व्यवस्था की भावना देखी जा सकती है।
अगर कोई इस रहस्य को तोड़ने या गलत तरीके से उपयोग करने की कोशिश करता है, तो हमें जागरूकता फैलानी चाहिए और मंदिर की परंपराओं को पूरी श्रद्धा से निभाना चाहिए।
परंपराओं को आधुनिकता के साथ संतुलन में रखकर, उन्हें डॉक्यूमेंट करना, युवाओं को इससे जोड़ना और इसे एक सांस्कृतिक धरोहर की तरह संरक्षित करना ही समाधान है।
लोगों को भारतीय संस्कृति की गहराई समझने को मिलेगी।
नई पीढ़ी को हमारे मंदिरों की विशेषता जानने का मौका मिलेगा।
आध्यात्म और दर्शन के नए दृष्टिकोण मिलेंगे।