मैं एक आम आदमी हूँ, जो गाँव में पला-बढ़ा है। मेरी ड्यूटी की वजह से मुझे आजकल उत्तर प्रदेश के एक शहर में रहना पड़ रहा है। यहाँ रहकर कुछ बातें मेरी सोच को झकझोर गईं, जो मैं आप सबके साथ बाँटना चाहता हूँ।
सबसे पहली बात – यहाँ का चावल, जो हमारे गाँव के चावल से लगभग दोगुना दाम का है। लेकिन पकने में सिर्फ़ 15 मिनट लगता है, जबकि गाँव का देसी चावल पकने में आधा घंटा लगता है। सोचिए, जो चावल सिर्फ़ 40 रुपये किलो में गाँव में मिल जाता है, वही शहर में 80 रुपये से ऊपर में बिक रहा है!
गाँव का देसी चावल, स्वाद और सेहत दोनों के लिए अच्छा है, लेकिन लोग शहरी चकाचौंध में महंगे ब्रांडेड चावल को ही चुनते हैं। ऐसे में मेरी सलाह है – जैविक और देसी चावल खाइए, लाल चावल (red rice) जैसे विकल्प भी स्वास्थ्य के लिए बेहतरीन हैं।
शहर में एक छोटा सा कमरा लेकर रहना भी महंगा है। बाहर निकलिए तो हर चीज़ 200–300 रुपये खर्च करवा ही देती है। एक परिवार का महीने का खर्च गाँव में 2000 में भी संभल सकता है, लेकिन शहर में यही खर्च 10,000 से ऊपर पहुँच जाता है।
गाँव में घर का ही मुरमुरा (मुरी) नाश्ते में खा लेते हैं, सब्जी हफ्ते में एक बार बाजार से आती है, और सादा खाना बनता है। कोई दिखावा नहीं, कोई बर्बादी नहीं। शहर में फ्रिज जरूरी हो जाता है, जबकि हम गाँव में बिना फ्रिज के भी सालों से रह रहे हैं।
आज मैंने एक विदेशी डॉक्टर की कहानी पढ़ी, जो अपने शरीर की उम्र को कम करने के लिए जंगल में चला गया। उसने 10 दिन परिवार के साथ प्राकृतिक माहौल में बिताए – बिना बिजली, बिना फोन, बिना किसी सुविधा। केवल प्राकृति के साथ।
2 साल बाद जब उसने मेडिकल टेस्ट कराया, तो उसके अंगों की उम्र कम हो गई थी। यानी प्राकृतिक जीवन सिर्फ मन को नहीं, शरीर को भी जवान बनाता है।
कम खर्च, ज्यादा सुकून – गाँव में जीवन सस्ता और संतुलित है।
स्वस्थ जीवनशैली – देसी चावल, ताजा सब्जी, और घर का खाना सबसे बेहतर है।
प्राकृतिक वातावरण – प्रदूषण रहित जीवन लंबी उम्र देता है।
परिवार के साथ समय – गाँव में परिवार एक साथ ज्यादा समय बिता सकता है।
तनाव मुक्त जीवन – भागदौड़ नहीं, संतुलन है।
बच्चों को शुरू से देसी खाने की आदत डालें।
महंगे ब्रांड से ज़्यादा स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा दें।
गाँव के लोगों को गाँव में ही रोज़गार के मौके मिलें, ताकि पलायन रुके।
सोशल मीडिया पर गाँव की सच्ची कहानियाँ शेयर करें।
धीरे-धीरे शहर से गाँव की ओर लौटें।
छोटी शुरुआत करें – घर की खेती, देसी भोजन, कम संसाधनों में जीवन।
बच्चों की पढ़ाई खत्म होने के बाद गाँव में सेटल हों।
मोबाइल, फ्रिज जैसी चीज़ों से दूरी बनाएं जब तक ज़रूरत न हो।
अपने अनुभव शेयर करें – जैसे मैंने किया।
गाँव की ज़िंदगी को प्रमोट करें – इसे शर्म नहीं, गर्व मानें।
गांव के लोगों को बताएं कि उनका जीवन वास्तव में समृद्ध है – सिर्फ़ थोड़ी जागरूकता की ज़रूरत है।