आज 17 जुलाई 2025 है। सुबह जब मैं उठा, तो दिल में कुछ अजीब सा महसूस हुआ। जैसे कुछ बातें ठीक नहीं लग रही थीं। मैंने देखा कि हमारे समाज में जो गरीब लोग हैं, उनका रहन-सहन, चलना-फिरना, खाना-पीना और जीवन जीने का तरीका शहर के लोगों से बहुत अलग होता है।

मेरा घर गाँव में है, इसलिए मुझे उनकी जीवनशैली को नजदीक से देखने का मौका मिलता है। गाँव के कुछ लोग जंगल के किनारे रहते हैं, और शहर की चकाचौंध से कोसों दूर हैं। वहीं शहर के सरकारी अस्पतालों में भी गाँव के लोग कम ही बीमार पड़ते हैं क्योंकि वे मसालेदार या प्रोसेस्ड चीजें कम खाते हैं और प्राकृतिक जीवन जीते हैं।

गाँव के लोग जितना अपने आसपास के मौसम और पर्यावरण के अनुसार जीते हैं, उतना ही उनका शरीर भी प्रकृति से तालमेल बिठा लेता है। इसके विपरीत, शहर की ज़िंदगी तनावपूर्ण और खर्चीली हो जाती है। वहाँ हर चीज़ पर पैसा खर्च होता है – चाहे वो बाहर निकलना हो या ज़रा सी सुविधा चाहिए हो।

सिर्फ बच्चों की पढ़ाई के लिए शहर सही जगह हो सकता है, लेकिन बिना किसी जरूरी कारण के वहां टिके रहना, ज़िंदगी को बोझिल बना देता है। हर इंसान चाहता है कि वो लंबी उम्र जिए, लेकिन शहर की हवा, केमिकल युक्त खाना और तनाव उसकी उम्र पर असर डालते हैं।

गाँव में आज भी लोग फ्रिज कम इस्तेमाल करते हैं, सब्जियाँ ताजी और स्थानीय बाजार से लाते हैं, और ज्यादातर चीजें ऑर्गेनिक ही खाते हैं। ऐसे में शरीर पर उम्र का असर बहुत धीरे-धीरे होता है।

हमारे अंग और हमारा शरीर भी उम्र और रहन-सहन से जुड़ा होता है। इसीलिए अगर हम चाहते हैं कि शहर में भी अच्छा जीवन जिएं, तो हमें गाँव की जीवनशैली से प्रेरणा लेनी होगी। हमें केमिकल से दूर रहना होगा, खाने-पीने में सादगी लानी होगी, और प्रकृति के करीब रहना होगा।

गाँव को भी आधुनिकता की अंधी दौड़ से बचाना चाहिए और शहरों में भी प्रकृति की झलक लानी चाहिए। तभी हम एक संतुलित और स्वस्थ जीवन जी सकेंगे।