17 जून 2025 का दिन मेरे जीवन का एक कड़वा अनुभव लेकर आया। उस दिन मेरे साथ एक ऐसी घटना घटी, जिसने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। मैं थोड़े तनाव में था, क्योंकि मेरा हेडफोन भी काम नहीं कर रहा था और दिमाग भी पहले से थोड़ा उलझा हुआ था। मेरे दो बच्चे हैं—एक छोटा दो साल का और दूसरा बड़ा लगभग पाँच साल का।

हमेशा की तरह बच्चे शरारत कर रहे थे। मेरा बड़ा बेटा छत पर चला गया था और तेज धूप में उसकी माँ उसे डाँटने लगी। शायद उसने उसे थोड़ा मारा भी। उस समय मेरा गुस्सा एकदम फूट पड़ा और मैंने बिना सोचे-समझे बच्चे को बहुत जोर से मार दिया।

मैंने उसे पीठ पर मारा, इतनी जोर से कि मेरी हथेली भी लाल पड़ गई। मुझे दो मिनट बाद ही एहसास हुआ कि मैंने कितनी बड़ी गलती कर दी। बच्चा रोने लगा, उसे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी। उस पल मेरा दिल काँप गया। मुझे लगा कि मैंने पिता के रूप में बहुत बड़ी असफलता की है।

मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, क्योंकि मैंने उसे समझाने की बजाय गुस्से से काम लिया। मेरा गुस्सा मुझे उस हद तक ले गया जहाँ इंसान खुद को भूल जाता है। गुस्सा किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता—यह मैंने आज समझा।

मैं यह अनुभव इसलिए बाँट रहा हूँ ताकि अगर कोई और इस तरह की स्थिति में हो तो वह खुद को रोक सके। जब भी गुस्सा आए, वहाँ से हट जाइए। कुछ पल के लिए दूरी बना लीजिए, क्योंकि दो मिनट बाद आप खुद को बेहतर महसूस करेंगे। बच्चे हमारी ज़िम्मेदारी हैं, न कि हमारी कमजोरी का शिकार।

मैं अपने बच्चे को समय नहीं दे पाता क्योंकि हमेशा काम में व्यस्त रहता हूँ। लेकिन अब मैं ठान चुका हूँ कि अपने बच्चे को समय दूँगा, उसे अच्छे संस्कार और शिक्षा दूँगा। उसमें जो हुनर है, उसे सँवारूँगा।

मैं हर माता-पिता से अनुरोध करता हूँ कि गुस्से में आकर कभी भी बच्चों पर हाथ न उठाएँ। हमें एक रणनीति बनानी होगी, एक योजना जिससे हम बच्चों को प्यार से अनुशासन सिखा सकें।

यह पोस्ट मेरे दिल से निकली है। अगर इससे किसी को मदद मिले, तो मुझे संतोष होगा। कृपया इस अनुभव को औरों से साझा करें—क्योंकि सीखना और सिखाना ही इंसान की सबसे बड़ी खूबी है।